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लीलाधर जगुड़ी का जीवन परिचय, रचनाएं, काव्यात्मक विशेषताएं। Liladhar jagudi ka jivan Parichay Hindi

 लीलाधर जगुड़ी का जीवन परिचय, रचनाएं, काव्यात्मक/ साहित्यिक विशेषताऐं ।

लीलाधर जगुड़ी का जीवन परिचय, रचनाएं, काव्यात्मक/ साहित्यिक विशेषताऐं।  जीवन परिचय - श्री लीलाधर जगुड़ी जी का जन्म 1 जून 1944 को उत्तर प्रदेश के टिहरी गढ़वाल में हुआ। ये साठोत्तरी कविता के सुप्रसिद्ध कवि कहे गए हैं। ये एक घुमक्कड़ प्रकृति वाले इंसान थे। इसी के चलते इन्होंने मात्र 12 वर्ष की आयु में ही अपना घर छोड़ दिया था। कम वर्ष में ही घर छोड़ देने के कारण इनकी शुरुआती शिक्षा अच्छे से नही हो पाई, परन्तु फिर भी इन्होंने अपने आपको संभाला और हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त कर ली।  बाद में इनका परिवार टिहरी से उत्तरकाशी जा बसा।  सन 1961 में इन्होंने फौज में गढ़वाल रेजिमेंट में रंगरूट के तौर पर कार्य किया। बाद में इन्होंने ये नौकरी छोड़ दी। इसके पश्चात इन्होंने लगभग 15 वर्षों( 1965-1980) तक अध्यापन कार्य भी किया।। 1981 में ये उत्तर प्रदेश के सूचना एवम् जन संपर्क विभाग से जुड़े और विभागीय पत्रिका 'उत्तर प्रदेश' का संपादन भी किया। तब से लेकर अब तक वे लगातार अपनी लेखनी में लगे हुए है। इन्हे साहित्य अकादमी पुरस्कार, सहाय सम्मान तथा 2004 में पदम श्री पुरस्कार भी मिला ।   रचनाएं - श्री लीलाधर जगुड़ी जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी कवि है। इन्होंने गद्य पद्य दोनो विधाओं में रचनाएं लिखी है। परन्तु ये एक कवि के रुप में अधिक पहचाने जाते है। इनकी प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित हैं -  काव्य संग्रह -  अनुभव के आकाश में चांद (साहित्य अकादमी पुरस्कार), ईश्वर की अध्यक्षता में, नाटक जारी है, इस यात्रा में, महाकाव्य के बिना, घबराए हुए शब्द, भय भी शक्ति देता है आदि।  गद्य-  पर्वतीय क्षेत्रों में प्रौढ़ों के लिए, हमारे आखर, कहानी के आखर आदि।  काव्यगत विशेषताएँ- श्री लीलाधर जगुड़ी जी को अगर स्वतंत्रता के बाद का कवि कहा जाए तो गलत नही होगा। ये हिन्दी काव्य जगत में एक महत्वपूर्ण व्यक्ती है। जगुड़ी जी लगभग पिछले 50 वर्षों से लगातार काव्य रचना कर रहें हैं। इनके काव्य में हमें मनुष्य की स्वेंदनशीलता साफ साफ दिखाई देती है। इन्होंने अपने काव्य में यथार्थ जीवन का यथार्थ चित्रण किया है। इन्होंने अपने काव्य में सत्ता को निशाना बनाया है। समाज में व्याप्त विषमताओं पर करारा व्यंग्य किया है।  आधुनिक कालीन कवि होने के कारण इन्होंने अपने काव्य में अनेक नए नए प्रयोग किए है। इनकी कविताएं शब्दों के जाल से रहित ,जीवन की कठिन समस्याओं से जुड़ी है। ये एक छोटी सी कविता को भी एक विशाल महाकाव्यात्मक रुप प्रदान करते हैं।   भाषा शैली - श्री लीलाधर जगुड़ी जी ने अपने काव्य में सहज सरल एवम व्यवहारिक हिन्दी भाषा का प्रयोग किया है। इनकी भाषा इनकी सांस्कृतिक चेतना को प्रकट करती है। इन्होंने अपनी भाषा में खड़ी बोली के साथ साथ स्थानीय शब्दों, उर्दू फारसी के शब्दों, मुहावरों तथा लोकोक्तियों का भी प्रयोग किया है। इन्होंने मुख्यत संवादात्मक, व्यंग्यात्मक ओर आत्मकथात्मक शैलियों का प्रयोग किया है। प्रसाद और ओज गुण इनके काव्य के मुख्य गुण है।


जीवन परिचय - श्री लीलाधर जगुड़ी जी का जन्म 1 जून 1944 को उत्तर प्रदेश के टिहरी गढ़वाल में हुआ। ये साठोत्तरी कविता के सुप्रसिद्ध कवि कहे गए हैं। ये एक घुमक्कड़ प्रकृति वाले इंसान थे। इसी के चलते इन्होंने मात्र 12 वर्ष की आयु में ही अपना घर छोड़ दिया था। कम वर्ष में ही घर छोड़ देने के कारण इनकी शुरुआती शिक्षा अच्छे से नही हो पाई, परन्तु फिर भी इन्होंने अपने आपको संभाला और हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त कर ली। बाद में इनका परिवार टिहरी से उत्तरकाशी जा बसा।

 सन 1961 में इन्होंने फौज में गढ़वाल रेजिमेंट में रंगरूट के तौर पर कार्य किया। बाद में इन्होंने ये नौकरी छोड़ दी। इसके पश्चात इन्होंने लगभग 15 वर्षों( 1965-1980) तक अध्यापन कार्य भी किया।। 1981 में ये उत्तर प्रदेश के सूचना एवम् जन संपर्क विभाग से जुड़े और विभागीय पत्रिका 'उत्तर प्रदेश' का संपादन भी किया। तब से लेकर अब तक वे लगातार अपनी लेखनी में लगे हुए है। इन्हे साहित्य अकादमी पुरस्कार, सहाय सम्मान तथा 2004 में पदम श्री पुरस्कार भी मिला ।



रचनाएं - श्री लीलाधर जगुड़ी जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी कवि है। इन्होंने गद्य पद्य दोनो विधाओं में रचनाएं लिखी है। परन्तु ये एक कवि के रुप में अधिक पहचाने जाते है। इनकी प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित हैं -


काव्य संग्रह

अनुभव के आकाश में चांद (साहित्य अकादमी पुरस्कार), ईश्वर की अध्यक्षता में, नाटक जारी है, इस यात्रा में, महाकाव्य के बिना, घबराए हुए शब्द, भय भी शक्ति देता है आदि।

गद्य

पर्वतीय क्षेत्रों में प्रौढ़ों के लिए, हमारे आखर, कहानी के आखर आदि।


काव्यगत विशेषताएँ- श्री लीलाधर जगुड़ी जी को अगर स्वतंत्रता के बाद का कवि कहा जाए तो गलत नही होगा। ये हिन्दी काव्य जगत में एक महत्वपूर्ण व्यक्ती है। जगुड़ी जी लगभग पिछले 50 वर्षों से लगातार काव्य रचना कर रहें हैं। इनके काव्य में हमें मनुष्य की स्वेंदनशीलता साफ साफ दिखाई देती है। इन्होंने अपने काव्य में यथार्थ जीवन का यथार्थ चित्रण किया है। इन्होंने अपने काव्य में सत्ता को निशाना बनाया है। समाज में व्याप्त विषमताओं पर करारा व्यंग्य किया है।

 आधुनिक कालीन कवि होने के कारण इन्होंने अपने काव्य में अनेक नए नए प्रयोग किए है। इनकी कविताएं शब्दों के जाल से रहित ,जीवन की कठिन समस्याओं से जुड़ी है। ये एक छोटी सी कविता को भी एक विशाल महाकाव्यात्मक रुप प्रदान करते हैं। 


भाषा शैली - श्री लीलाधर जगुड़ी जी ने अपने काव्य में सहज सरल एवम व्यवहारिक हिन्दी भाषा का प्रयोग किया है। इनकी भाषा इनकी सांस्कृतिक चेतना को प्रकट करती है। इन्होंने अपनी भाषा में खड़ी बोली के साथ साथ स्थानीय शब्दों, उर्दू फारसी के शब्दों, मुहावरों तथा लोकोक्तियों का भी प्रयोग किया है। इन्होंने मुख्यत संवादात्मक, व्यंग्यात्मक ओर आत्मकथात्मक शैलियों का प्रयोग किया है। प्रसाद और ओज गुण इनके काव्य के मुख्य गुण है।

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