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महादेवी वर्मा का जीवन परिचय, रचनाएं , साहित्यक विशेषताएं। Mhadevi Verma ka jivan parichay। Rachnaye।

महादेवी वर्मा का जीवन परिचय, रचनाएं , साहित्यक विशेषताएं। Mhadevi Verma ka jivan parichay। Rachnaye।






महादेवी वर्मा का जीवन परिचय, रचनाएं , साहित्यक विशेषताएं। Mhadevi Verma ka jivan parichay। Rachnaye।

जीवन परिचय


महादेवी वर्मा का जन्म सन् 1907 ई. में उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद शहर में हुआ। इनकी प्रारंभिक शिक्षा इंदौर में हुई। 1916 ई. में विवाह के कारण इनकी शिक्षा कुछ समय के लिए बाधित हुई, परंतु 1919 ई. में इन्होंने पुनः क्रास्वेट कॉलेज, प्रयाग से अपनी पढ़ाई प्रारंभ की तथा 1933 ई. में प्रयाग विश्वविद्यालय से ही संस्कृत विषय में एम.ए. करके ये प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्य नियुक्त हुई और तब से वहीं कार्य करती रहीं। बाद में ये लम्बे अर्से तक प्रयाग महिला विद्यापीठ की कुलपति भी रहीं। बचपन में ही अपनी सखी सुभद्रा कुमारी चौहान, जो इनसे कुछ बड़ी थी, की प्रेरणा पाकर इन्होंने जो लेखन कार्य आरंभ किया, वह मृत्युपर्यन्त अनवरत रूप से जारी रहा। 

इन्होंने हिन्दी साहित्य के कई दौर देखे ये छायावादी काव्य के चार प्रमुख आधार स्तम्भों में से एक के रूप में जानी जाती हैं। इन्हें अपनी कविताओं में दर्द व पीड़ा की अभिव्यक्ति के कारण 'आधुनिक मीरा भी कहा जाता है। इनका निधन 1987 ई. में हुआ। 

2. रचनाएँ-

लेखिका महादेवी वर्मा हिन्दी साहित्य में कवयित्री के रूप में अधिक प्रसिद्ध हैं, हालांकि उन्होंने अपनी लेखनी से रेखाचित्र एवं संस्मरण साहित्य के रूप में हिन्दी गद्य साहित्य की भी श्रीवृद्धि की है। उनकी लेखनी से विरचित उनकी प्रमुख रचनाएं

 (i) काव्य संग्रह- '
नीहार', 'रश्मि', 'नीरज', 'सांध्यागीत', 'दीपशिखा' व 'यामा' 

(ii) गय-साहित्य 
- श्रृंखला की कड़ियाँ', 'अतीत के चलचित्र', 'स्मृति की रेखाएँ', 'पथ के साथी', 'क्षणदा' व 'परिक्रमा'
 (iii) संपादन- 'चाँद' पत्रिका 

3. पुरस्कार एवं सम्मान -

 महादेवी वर्मा जी के लेखन की एक सुदीर्घ अवधि है। अपने इस दीर्घ लेखन काल में महादेवी ने अनेक पुरस्कार व सम्मान प्राप्त किए हैं, उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं

(1) सेक्सरिया पुरस्कार- 'नीरजा' पर
 (2) द्विवेदी पदक-स्मृति की रेखाएं

(3) हिन्दी साहित्य सम्मेलन का मंगला प्रसाद पुरस्कार

(4) पद्म भूषण (1956 ई.) साहित्य सेवा के लिए।
 (5) ज्ञानपीठ पुरस्कार- 'यामा' व 'दीपशिखा' पर।

(6) चिक्रम, कुमाऊ, दिल्ली व बनारस विश्वविद्यालयों द्वारा डी.लिट् की मानद उपाधि मरणोपरांत इन्हें भारत सरकार की ओर से पद्म विभूषण' पुरस्कार भी दिया गया। 

4. साहित्यिक विशेषताएँ- 


महादेवी जी मूलतः एक कवयित्री थी तथा छायाबाद के चार आधार स्तम्भों में से एक के रूप में प्रसिद्ध थीं जहाँ उनका काव्य संवेदना, भाव संगीत एवं चित्र का अद्भुत संगम है, वहीं बहुत से आलोचकों के मत में उनका गद्य साहित्य अपेक्षाकृत अधिक प्रखर एवं अनुभूति प्रवण है। हालांकि उनके गद्य में भी उनके कवि हृदय के ही दर्शन होते हैं। 
इन्होंने अपनी गद्य रचनाओं में भी अनुभूति की गहराई के साथ उपेक्षित प्राणियों के चित्र अपनी करुणा से रंजित कर इस प्रकार प्रस्तुत किए हैं कि पाठक उनके साथ आत्मीयता का अनुभव करने लगता है। पथ के साथी' में उन्होंने अपने युग के प्रमुख साहित्यकारों के अत्यन्त व्यक्ति चित्र संकलित किए हैं तो 'श्रृंखला की कड़ियों में आधुनिक नारी की समस्याओं को सुलझाने के उपायों का निर्देश दिया है।
 महादेवी वर्मा जी की साहित्यिक विशेषताएं निम्नलिखित हैं


समाज का यथार्थ चित्रण-


महादेवी वर्मा जी ने अपने गद्य साहित्य में समकालीन समाज का यथार्थ चित्रण किया है। समाज के यथार्थ चित्रण के अन्तर्गत उन्होंने समाज के सुख-दुःख, गरीबी, शोषण आदि का यथार्थ वर्णन किया है। इनके रेखाचित्रों एवं संस्मरणों में समाज में फैली गरीबी, कुरीतियों, जाति-पाँति, भेदभाव, धर्म, सम्प्रदायवाद आदि विसंगतियों का यथार्थ के धरातल पर अंकन हुआ है। वे एक समाजसेवी लेखिका थीं। वे आजीवन साहित्य सेवा के साथ-साथ समाज का उद्धार करने में लगी रहीं। 

(ii) निम्न वर्ग के प्रति सहानुभूति

 महादेवी वर्मा जी के जीवन पर महात्मा बुद्ध, विवेकानंद स्वामी रामतीर्थ आदि के विचारों का गहरा प्रभाव था, जिसके कारण उनकी निम्न वर्ग के प्रति गहन सहानुभूति रही है। उनके गद्य साहित्य में समाज के पिछड़े वर्ग के अत्यन्त मार्मिक चित्र चित्रित हैं। उन्होंने समाज उच्च वर्ग द्वारा उपेक्षित कहे जाने वाले लोगों के प्रति संवेदना व्यक्त की है।

यही कारण है कि उन्होंने अपने गय साहित्य में अधिकांश पात्र निम्न वर्ग से ग्रहण किए हैं।

 (iii) मानवेतर प्राणियों के प्रति प्रेम भावना-

महादेवी जी केवल मनुष्यों से ही प्रेम नहीं करती थीं, अपितु अन्य मानवेतर प्राणियों से भी उनका गहरा लगाव था। उन्होंने अपने घर में भी कुत्ते, बिल्ली, गाय, नेवला आदि को पाता हुआ था। इनके रेखाचित्रों एवं संस्मरणों में इन मानवेतर प्राणियों के प्रति इनका गहन प्रेम और संवेदना संकृत होता है। जैसे-"उसका मुख इतना छोटा था कि उसमें शीशी का निपल समाता ही नहीं था उस पर उसे पीना भी नहीं आता था। फिर धीरे-धीरे उसे पीना ही नहीं, दूध की बोतल पहचानना भी आ गया। आंगन में कूदते फांदते हुए भी भक्तिन को बोतल साफ करते देखकर वह दौड़ आती है और तरत चकित आंखों से उसे ऐसे देखने लगती, मानो वह कोई सजीव मित्र हो।"

 (iv) वात्सल्य भावना का चित्रण 

लेखिका का गद्य साहित्य में बासल्य भावना का अनूठा चित्रण हुआ है। उनको मानव ही नहीं मानवेतर प्राणियों से भी वत्सल प्रेम था वे अपने घर में पाले हुए कुत्ते, बिल्लियों, नेवला, गाय आदि प्राणियों की एक मां के सेवा करती यही सेवा भावना उनके रेखाचित्र और संस्मरणों में भी अभिव्यक्त हुई है। इसी भाव के मानस हिरणी की मृत्यु की घटना के बाद उन्होंने फिर कभी किसी अन्य हिरण-हिरणी को न पालने का निश्चय किया था। 

(v) समाज सुधार की भावना-


लेखिका समाज सेवा भावना से ओत प्रोत महिला थी। उनके जीवन पर बुद्ध, विवेकानंद आदि विचारकों का प्रभाव पड़ा जिसके कारण उनकी वृत्ति समाज सेवा की ओर उन्मुख हो गई थी। उन्होंने अपने साहित्य के माध्यम से समाज में फैली कुरीतियों, विसंगतियों, विडम्बनाओं आदि को उखाड़ने के भरपूर प्रयास किए हैं। इन्होंने अपने गद्य साहित्य में नारी शिक्षा का भरपूर समर्थन किया है तथा नारी शोषण, बाल-विवाह आदि का विरोध किया। उनके समाज सुधार संबंधी विचार उनके प्रायः सभी संस्मरणों में बिखरे पड़े हैं।

5. भाषा-शैली-


 महादेवी जी संस्कृत भाषा की परास्नातक तथा छायाबाद की प्रमुख कवयित्री थीं। अतः इनकी भाषा प्रायः तत्सम् शब्दावली युक्त शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली है। इनकी भाषा में व्याकरणिक शुद्धता, सरलता, सरसता व धारा-प्रवाह का अविराम गुण सर्वत्र मौजूद है। इनके काव्य में माधुर्य गुण की प्रमुखता है, तो गद्य में प्रसाद व माधुर्य दोनों की इनका वाक्य विन्यास इनकी कुछ रचनाओं को छोड़कर प्रायः दीर्घ है, परंतु गंभीर व रोचक है। 

इनकी शैली के दो स्पष्ट रूप हैं-विचारात्मक और भावात्मक विचारात्मक गद्य में तर्क और विश्लेषण को प्रधानता है तथा भावात्मक गद्य में कल्पना और अलंकृत वर्णन को प्रधानता है। इनके गद्य में भी काव्यात्मकता के दर्शन होते हैं। इन्होंने विभिन्न आधुनिक बिम्बों को अपने साहित्य में प्रस्तुत किया है। करुण रस इनके साहित्य का प्रधान रस है।

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