जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय। Jaishankar Prasad ka jivan Parichay
युग चाहे कोई भी हो या समय चाहे कोई भी हो। लेकिन हर एक युग में, हर एक समय में, हर एक वाद में एक ऐसा व्यक्ति जरूर होता है, जो उस समय का एक जाना माना लेखक बनता है, एक प्रसिद्ध कवि बनता है। वो समाज की परिस्थिति से हमें अवगत कराता है। आज हम बात करने वाले हैं छायावाद के प्रमुख कवि, छायावाद के प्रमुख प्रवर्तक, हिंदी साहित्य के आधुनिक कवि कहे जाने वाले जयशंकर प्रसाद की। आपने कहीं ना कहीं कभी ना कभी इनका नाम अवश्य ही सुना होगा अगर नहीं सुना तो उनकी रचनाएं अवश्य पढ़ी होंगी। आज हम बात करते हैं उनके जीवन के बारे में उनकी लेखन की विशेषताओं के बारे में।
महाकवि जयशंकर प्रसाद
प्रमुख रचनाएं: प्रसाद जी एक प्रमुख कवि के साथ साथ बहुमुखी प्रतिभा के मालिक थे। उनकी प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित है -
काव्य: कामायनी, आंसू, कानन -कुसुम , झरना आदि।
नाटक: विशाख, करुणालय, ध्रुवस्वामिनी, कामना, विक्रमादित्य आदि।
उपन्यास: कंकाल, तितली
कहानी ओर निबन्ध: काव्य और कला, आंधी, इंद्रजाल, आकाशदीप।
साहित्यिक विशेषताएं : किसी भी साहित्यकार के लिए उसके साहित्य की विशेषताओं का एक अलग महत्व होता है क्योंकि हर एक व्यक्ति के लिखने का बोलने का ओर उसके समझने का तरीका अलग अलग होता है।
प्रसाद जी का साहित्य छायावादी साहित्य माना जाता है । इनके साहित्य में कोमलता, माधुर्य, शक्ति और ओज हमेशा विद्यमान रहते हैं ।प्रेम तथा सौंदर्य का वर्णन, वेदना की अभिव्यक्ति, प्रकृति का चित्रण, रहस्य की अनुभूति, मानव का दृष्टिकोण आदि इनके साहित्य में विद्यमान रहते हैं।
अगर हम इनके साहित्य की विशेषताओं की और देखेंगे तो हम पाएंगे कि इनके साहित्य में प्रेम और सौंदर्य का वर्णन देखने को मिलता है। यह अपनी रचनाओं में प्रकृति का मधुर चित्रण भी करते हैं, ओर भयावय भी। छायावादी प्रमुख कवि होने के कारण इनके काव्य में एक अनजाना प्रेम हमेशा रहता है। करुण रस और श्रृंगार रस इनके काव्य में देखने को मिलता है जहां एक और करुण रस वेदना की ओर, तथा श्रृंगार रस इनके प्रेम का बखूबी वर्णन करता है।।
भाषा शैली: प्रसाद जी ने अपने साहित्य में छायावादी काव्य शैली का अनुकरण करते हुए संस्कृतनिशष्ठ तत्सम प्रधान खड़ी बोली का प्रयोग किया है। उनकी भाषा में ओज, माधुर्य और प्रसाद तीनों गुण विद्यमान हैं। प्रसाद जी की अलंकार योजना भी उच्च कोटि की है। इन्होंने प्राय अनुप्रास, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, रूप अतिशयोक्ति, मानवीकरण अलंकारों का सफल प्रयोग किया है।।।
रस की दृष्टि से हिंदी साहित्य में नव रसों का प्रयोग होते हुए भी करुण और श्रृंगार रस की अधिकता है।। वर्णनात्मक, भावात्मक, प्रतीकात्मक, आत्मकथात्मक आदि इनके साहित्य के विभिन्न शैलियां हैं। कुल मिलाकर इनकी भाषा सरल, सहज तथा प्रवाहमयी है।
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