हमारा देश कविता का सार, व्याख्या, विशेष।
'हमारा देश' नामक कविता को प्रसिद्ध साहित्यकार कविकार अज्ञेय जी ने लिखा है। इस कविता में अज्ञेय जी ने समाज के जीवन का यथार्थ चित्रण किया है। इस कविता के माध्यम से वे संदेश देते हैं कि भारत की जो असली संस्कृति है, वह केवल ग्रामीण इलाकों में ही जीवित बची है।
गांव के लोग आज भी अपने पुराने रीति-रिवाजों के हिसाब से ही अपना जीवन यापन करते हैं।
किंतु आज इस गांव की संस्कृति को भी ही शहरी सभ्यता का प्रभाव पड़ने लगा है। इसी प्रभाव के साथ ही ग्रामीण संस्कृति भी शहरी होती जा रही है। कभी अपनी इस कविता में बताते हैं कि नगरीय सभ्यता के सामने आज के गांवों को भी डस लिया है।
हमारा देश कविता की व्याख्या/ सरलार्थ
1.)
इन्हीं तृण-फूस छप्पर से
ढँके ढुलमुल गँवारू
झोंपड़ों में ही हमारा देश बसता है।
इन्हीं के ढोल-मादल-बाँसुरी के
उमगते सुर में
हमारी साधना का रस बरसता है।
व्याख्या - कवि गांव के बारे में कहते हैं कि इन्हीं तिनकों और फुंसो से बनी हुई झोपड़ियों में हमारा देश बसता है। गांव के लोग अपने ढोल मादल और बांसुरी बजाते हैं, ताकि वे अपने आप में मगन रह सके। किंतु इनमें से जो सुर निकलता है उन्हें हमारी साधना का रस बरसता है।
विशेष -
1. भारत के गांव का चित्रण किया है।
2. शुद्ध साहित्यिक भाषा का प्रयोग किया है।
3. मुक्तक छंद का प्रयोग किया गया है।
2.) इन्हीं के मर्म को अनजान
शहरों की ढँकी लोलुप
विषैली वासना का साँप डँसता है।
इन्हीं में लहरती अल्हड़
अयानी संस्कृति की दुर्दशा पर
सभ्यता का भूत हँसता है।
व्याख्या - कभी कहते हैं कि गांव की भोली भली है उन सीधी-सादी संस्कृति को अनेक रहस्य से भरा हुआ शहरी सभ्यता का सांप डस रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे अपने आप में मस्त गांव की भोली भाली सभ्यता पर शहरी सभ्यता का भूत हंस रहा है।
विशेष -
1.गांव की सभ्यता पर शहरी सभ्यता का प्रभाव देखने को मिलता है।
2. भाषा सहज सरल एवम भावानुकूल है।
3. शब्द योजना सार्थक एवम भावानुकूल है।
4. रूपक अलंकार का प्रयोग है।
कवि के कहने का मूल भाव यह है की आज लोग अपनी संस्कृति को छोड़कर शहरी , आधुनिक संस्कृति का शिकार होते जा रहे है।
सांप कविता का सार/सांप कविता की व्याख्या
हमारा देश कविता की तरह ही सांप कविता को भी अज्ञेय जी ने लिखा है। इस कविता में मात्र एक ही पद्य है, जो इस प्रकार है -
सांप!
तुम सभ्य तो नहीं हुए
नगर में बसना
भी तुम्हें नहीं आया
एक बात पूछूं -- ( उत्तर दोगे)
तब कैसे सीखा डसना
विष कहां पाया?
व्याख्या - कवि आज के सभ्य नागरिक को सांप की उपाधि देते हुए कहता है कि तुम तो ईर्ष्या के विष में लीन सांप हो। तुम्हे तो शहर में भी नहीं रहना आया , तो तुम सभ्य कैसे हुए। कवि उससे एक प्रश्न पूछता है की तुम नगर में तो नहीं रहे,,, लेकिन तुम खुद को सभ्य नागरिक कहते हो तो तुमने दूसरों को डसना कैसे सीखा? अर्थात तुमने दूसरों से छल कपट करना कैसे सिख लिया।
विशेष -
1. आधुनिक मनुष्य पर गहरा प्रहार किया है।
2. मनुष्य को सांप की संज्ञा दी है।
3. शब्द योजना सार्थक और विषयानुकुल है।
4. व्यंग्य शैली का प्रयोग है।
5. मुक्त छंद का प्रयोग है।
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