Header Ads Widget

स्वतंत्र जुबान कविता का सार व्याख्या। लीलाधार जागुड़ी Swatantr Juban kavita ka saar।

 स्वतंत्र जुबान कविता श्री लीलाधर जागुड़ी  के द्वारा लिखी गई एक सुप्रसिद्ध कविता है। इस कविता में कवि ने स्पष्ट कहा है कि आज का मनुष्य सत्य को भली भांति जानता है, फिर भी सत्य नहीं बोल पाता है।

स्वतंत्र जुबान कविता का सार व्याख्या। लीलाधार जागुड़ी Swatantr Juban kavita ka saar। 

स्वतंत्र जुबान कविता का सार व्याख्या। लीलाधार जागुड़ी Swatantr Juban kavita ka saar।


1. आज के आधुनिक युगीन मनुष्य की आवाज समाज के झंझट से बचने के चक्कर में दब चुकी है। लेकीन उसकी आत्मा उसे धिक्कारती है, उसे सत्य बोलने के उकसाती है। 

इस कविता में कवि के साथ उसका एक दोस्त भी है। वे दोनो हमेशा एक साथ रहते है, परन्तु दोनों ही एक दूसरे की जासूसी करते है। जुबान उन दोनो के पास ही है, पंरतु दोनो ही सत्य बोलने से डर रहे हैं। उन्हें डर हैं की सत्य बोलने से कहीं उनके लिए कोई समस्या न खड़ी हो जाए। इसीलिए कवि कहता है की आज प्रत्येक व्यक्ति के पास उसकी स्वतंत्र जुबान है , परन्तु इसका कोई महत्व नहीं है। 


2. कवि का साथी कवि से एक प्रश्न पूछने की कोशिश करता है, परन्तु फिर वह चुप हो जाता है। उसे डर है कि अगर वो सवाल करेगा तो वो खुद फंस सकता है। दुसरी तरफ़ कवि भी चुप चाप बैठा उसके हाव भाव देखता रहता है। वह देखना चाहता है की कोन पहले अपनी जुबान से सत्य कहता है।


Swatantr juban kavita ka saar


3. कवि के सामने जब अनेक प्रश्न उभरकर आते है, तो वो चाहता है की कवि और उसका साथी एक साथ खड़े हों तथा इन प्रश्नों के जवाब दे। लेकीन कवि के पास कोई भी जवाब नही था। परन्तु उसके साथी के पास क्या जवाब था , यह जानने के लिए कवि उसकी जासूसी करता है। 


4. कवि कहता है की आज एक रात को वह चुपचाप जाग उठता है और लोगो के सामने अपने सारे प्रश्न कह देता है। परन्तु लोगो के पास उनके खुद के सवाल होते है। इसीलिए वे कवि को बात को नजरंदाज कर देते है। लेकीन जब कवि बार बार ये सब कहता है तो लोग भी अपनी प्रतिक्रिया देते है, सभी अपने अपने विचार कहते है। उन लोगों के विचार अब किसी से छुपे नहीं थे। 


5. बाद में कवि देखता है की जो उसका मूल प्रश्न था, उसका कहीं हुई अता पता नहीं है। उसकी जगह कुछ और ही अफवाहें और प्रश्न उड़ रहे है। इससे कवि तथा उत्तर देने वाला व्यक्ति दोनो ही परेशान हो जाते हैं। 


6. कवि कहता है की प्रातः काल उठते ही इस बात का निर्णय लिया गया की उत्तर देने वाला पकड़ा ना जाए। उसे डर था की उसकी वाणी में लोग कुछ और ना जोड़ दे, तथा उसके किए कोई समस्या न खड़ी हो जाए। इसलिए कवि कहता है की आज के युग में मनुष्य के पास उसकी स्वतंत्र जुबान होनी चाहिए, जिससे वो बिना किसी डर से अपनी बात कह सके। परन्तु आज के लोकतांत्रिक युग में भी लोगों की जुबान पर ताले लग गए हैं। 


7. अब कवि के सामने एक नई समस्या है की आज के इस युग में भी एक स्वतंत्र जुबान आदमी को कहां से लेके आए। कवि सोचता है कि क्यों न अपनी ही आवाज की स्वतंत्र कर लिया जाए? परन्तु यह प्रश्न कवि को एक दिमागी गहराई में ले जाता है। वह देखता है की हजारों आवाजें पहले से ही दबी पड़ी है। ऐसे में वो कैसे अपने विचार व्यक्त कर सकता है, उसको भी भय लगता है।


Svatantr juban Kavita ki vyakhya


 8. कवि कहता है की जिस गहराई में वो गया था, वहा पानी के तल के करीब एक व्यक्ती ने उसे देख लिया। उसने कवि के पैरों का पीछा किया तथा भागने लगा। आपनी आवाज की स्वतंत्रता के लिए न तो कवि ने संघर्ष किया न ही उसके साथी ने। परन्तु कवि का साथी एक बैल की तरह मौन है। उसने समाज से अपने आपको बचाने के लिए जानवर की आवाज को धारण किया है, क्योंकि वह खुद को बैल जैसा मानता है। 


9. कवि कहता है कि उसने पशु की आवाज इसलिए धारण की है ताकि वह अपनी आलोचना और बदनामी को खत्म कर सके। कवि भी उसका अनुभव करता है। स्वतंत्र बोलने के लिए उसने अपनी जबान इसलिए खोली ताकि वह सही रह सके। परन्तु अब उसकी आवाज सड़ने लगी है। अब वह अपनी ही कही बातों से बचने के लिए कुछ भी बोले जा रहा है। 


10. कवि महसूस करता है की उसे अपने मित्र की आवाज को ठीक करना चहिए। पर जब वह व्यक्ति कवि के पास आता है, तो कवि केवल यही कहता है की आज ऐसा जमाना आ गया जिसमे लोगों ने असली बात कहना बंद कर दिया है,आज सभी डरे हुए हैं। कोई भी सच्ची बात कहकर किसी झमेले में नहीं पड़ना चाहता। आज बहुत से दल शासन चला रहे है। पहले केवल एक ही दल था। इसलिए सच्ची बातें आज कोई नहीं सुनना चाहता। 


स्वतंत्र जुबान कविता की व्याख्या


कवि कहता है की इस समय का सबसे बड़ा सवाल यह है कि हमारे विचार क्या है? कहीं जो दबी हुई वाणी है, वो हमारी ही तो नहीं है। इसलिए कवि और उसका साथी एक होकर रहते हैं अर्थात 

स्वतंत्र जुबान में मौन।



Post a Comment

0 Comments