paryavaran pradushan nibandh hindi। पर्यावरणीय प्रदूषण निबंध। Essay on paryavaran pradushan in hindi
पर्यावरणीय प्रदूषण।
प्रदूषण के विभिन्न प्रकारों में पर्यावरणीय प्रदूषण एक गम्भीर समस्या है। यह भारत की ही नहीं बल्कि विश्व की भी समस्या है। इस समस्या से निपटने के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेक प्रयास किए जा रहे हैं। सम्पूर्ण मानव जाति के अस्तित्व को समाप्त कर सकने में इस समस्या पर अब समस्त विश्व एकजुट है और इसके निवारण के उपायों की खोज में जुटा है। उल्लेखनीय है कि इससे विश्व (पर्यावरण प्रदूषित तो हो ही है, साथ ही कई अन्य कहित समस्याएँ भी उत्पन्न हो रही है।"
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सौरमण्डल में पृथ्वी एकमात्र ऐसा ग्रह है, जहाँ जीवन सम्भव है। पृथ्वी के वातावरण में 78 प्रतिशत नाइट्रोजन, 21 प्रतिशत ऑक्सीजन 3 कार्बन डाइऑक्साइड शामिल हैं। इन गैसों का पृथ्वी पर समुचित मात्रा में होना जीवन के लिए अनिवार्य है। किन्तु जब इन गैसों का अनुपातिक जाता है, तो जीवन के लिए प्रतिकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाती है। विश्व में आई औद्योगिक क्रान्ति के बाद से ही प्राकृतिक संसाधनों का शुरु हो गया था, जो उन्नीसवी एवं बीसवीं शताब्दी में अपने चरम पर था. कुपरिणामस्वरूप पृथ्वी पर गैसों का आनुपातिक सन्तुलन बिगड़ गया, जिससे और की जलवायु पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा एवं प्रदूषण का स्तर इतना अधिक बढ़ गया कि यह अनेक जानलेवा बीमारियों का कारक बन गया। इस तरह शरण में सन्दूषकों (अपशिष्ट पदार्थों) का इस अनुपात में मिलना, जिससे पर्यावरण का सन्तुलन बिगड़ता है, प्रदूषण कहलाता है। प्रदूषण के कई रूप हैं - प्रदुषण, वायु प्रदूषण, भूमि प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण इत्यादि जल में अपशिष्ट पदार्थों का मिलना-जल प्रदूषण, वायु में विवेली गैसों का मिलना-वायु प्रदूषण, भूमि में रासायनिक अपशिष्टों का मिलना-भूमि प्रदूषण एवं वातावरण में अत्यधिक शोर की स्थिति ध्वनि प्रदूषण कहलाती है।
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प्रदूषण के कई कारण है - उद्योगों से निकलने वाले रासायनिक अपशिष्ट पदार्थ जल एवं भूमि प्रदूषण का तो कारण बनते ही हैं, साथ ही इनके कारण वा तावरण में विशैली गैसो मिलने से वायु भी प्रदूषित होती है। मनुष्य ने अपने लाभ के लिए जंगलों की तेजी से कटाई की है। जंगल के पेड़ प्राकृतिक प्रदूषण नियन्त्रक का काम करते हैं। पेड़ों के पर्याप्त संख्या में न होने के कारण भी वातावरण में विशैली मैने जमा होती रहती है, उसका जीवन नहीं हो पाता। अन्य सामानों का ढोने के लिए पालिसीन का प्रयोग करता है। प्रयोग के बाद इन पॉलिथीनों को यूँ ही फेंक दिया जाता है। ये पॉलिधीन नालियों को अवरुद्ध कर है, जिसके फलस्वरूप पानी एक जगह जमा होकर प्रदूषित होता रहता है। इसके अतिरिक्त ये पॉलिथीन भूमि में मिलकर उसकी उर्वरा शक्ति को कम कर प्रौद्योगिकी में प्रगति के साथ ही मनुष्य की मशीनों पर निर्भरता बढ़ी है। मोटर, रेल, घरेलू गशीने इसके उदाहरण है। इन मशीनों से निकालने वाला धुआँ मी भर्यावरण के प्रदूषण के प्रमुख कारकों में से एक है। बढ़ती जनसंख्या को भोजन उपलब्ध करवाने के लिए खेतों में रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग में वृद्धि हुई इसके कारण भूमि की उर्वरा शक्ति का द्वारा हुआ है। रासायनिक एवं चमड़े के उद्योगों के अपशिष्टों को नदियों में बहा दिया जाता है। इस कारण जल दुषित हो जाता है एवं नदियों में रहने वाले जन्तुओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
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वरण प्रदूषण के कई दुष्परिणाम सामने आए है। इसका सर्वाधिक प्रतिकूल प्रभाव मानव के स्वास्थ्था पर पड़ा है। आज मनुष्य का शरीर अनेक बीमारियों का घर जा रहा है। खेतों में रासायनिक उर्वरका के माध्यम से उत्पादित खाद्य पदार्थ स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से सही नहीं है। वातावरण में बुली किनली गस एवं पूरे के कारण शहरों में मनुष्य का साँस लेना भी दूभर होता जा रहा है। विश्व की जलवायु में तेजी से हो रहे परिवर्तन का कारण एवं प्रदूषण हो है। पर्यावरणीय न पर्यावरण प्रदूषण को दूर करने के लिए हमें कुछ आवश्यक उपाय करने होंगे। मनुष्य स्वाभाविक से प्रकृति पर निर्भर है। प्रकृति पर उसकी निर्भरता तो
समाप्त नहीं की जा सकती, किन्तु प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करते समय हमें इस बात का ध्यान रखना पड़ेगा कि इसका प्रतिकूल प्रभाव पर्यावरण पर न गाए इसके लिए हमें उद्योगों की संख्या के अनुपात में बड़ी संख्या में पेड़ों को लगाने की आवश्यकता है। इसके पर्यावरण प्रदूषण को कम करने के लिए हमें जनसंख्या को स्थिर बनाए रखने की भी आवश्यकता है, क्योंकि जनसंख्या में वृद्धि होने से नाविक रूप से जीवन के लिए अधिक प्राकृतिक संसाधनों की आवश्यकता पड़ती है और इन आवश्यकताओं को पूरा करने के प्रयास में उद्योगों की स्थापना होती है और उद्योग कहीं न कहीं प्रदूषण का कारक भी बनते हैं। यदि हम चाहते हैं कि प्रदूषण कम हो एवं पर्यावरण की सुरक्षा के साथ-साथ सन्तुलित विकास जो इसके लिए हमें नवीन प्रौद्योगिकी का प्रयोग करना होगा। प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा तब ही सम्भव है जब हम इसका उपयुक्त प्रयोग क
गौरतलब है कि पर्यावरण प्रदूषण पर नियन्त्रण के लिए समय-समय पर अन्तर्राष्ट्रीय प्रयास भी किए जाते रहे हैं। ओजोन परत के संरक्षण के लिए सन 1985 में दिन सम्मेलन हुआ। वियना रामझौते के परिणामस्वरूप सन् 1987 में जो उरत में छेद करने वाले पदार्थ परन्ट्रियल समझौता हुआ। इसके बाद ७०० जापान में क्योटो प्रोटोकॉल में तय किया गया कि विकसित देश पृथ्वी के बढ़ते तापमा से दुनिया को बचाने के लिए अपने यहाँ ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन कनी लाएँगे। प्रदूषण को कम करने तथा विश्व स्तरीय ग्लोबल वार्मिंग एवं जलवायु परिवर्तन की प्रक्रिया को नियन्त्रित करने के लिए कार्बन क्रेडिट का सिद्धान्त प्रस्तुत किया गया है तथा इसको नियमित रूप से नियन्त्रित करने के लिए एक स्वच्छ विकास प्रणाली का गठन किया गया है। नवम्बर 2007 में सम्पन्न अभियान के 134 शिचार सम्मेलन में ऊर्जा, पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन तथा सतत विकास को विचारणीय विषय बनाया गया। इण्डोनेशिया के बालों में 2007 ही सम्पन्न संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में 180 देशी एवं अनेक अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस सम्मेलन में क्योटो सन्धि के आगे की रणनीति पर विचार किया गया। दिसम्बर 2009 में सम्पन्न कोपेनहेगन सम्मेलन का उद्देश्य भी पर्यावरण की सुरक्षा ही था।
इन्चुवः पर्यावरण प्रदूषण एक वैश्विक समस्या है, जिससे निपटना वैश्विक स्तर पर ही सम्भव है, किन्तु इसके लिए प्रयास स्थानीय स्तर पर भी किए जाने चाहिए। विकास एवं पर्यावरण एक-दूसरे के विरोधी नहीं है, अपितु एक-दूसरे के पूरक है। सन्तुलित एवं शुद्ध पर्यावरण के बिना मानव का जीवन कष्टनम हो आएगा हमारा अस्तित्व एवं जीवन की गुणवत्ता एक स्वस्थ प्राकृतिक पर्यावरण पर निर्भर है। विकास हमारे लिए आवश्यक है और इसके लिए प्राकृतिक दोसाधनों का दोहन भी आवश्यक है, किन्तु ऐसा करते समय हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि इससे पर्यावरण को किसी प्रकार का नुकसान न हो। पृथ्वी के बढ़ते तापक्रम को नियन्त्रित कर, जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए देशी तकनीकों से बने उत्पादों का उत्पादन तथा उपभोग जरूरी है। इसके साथ ही प्रदूषण को कम करने के लिए सामाजिक तथा कृषि वानिकों के माध्यम से अधिक से अधिक पेड़ लगाए जाने की भी आवश्यकता है।
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